Tokyo Olympics - हॉकी ओलंपिक मेडल जीतने में बेहद खास है 'द वॉल' श्रीजेश की भूमिका

भारत की ऐतिहासिक जीत में श्रीजेश की गोलकीपर की भूमिका बेहद अहम थी
भारत की ऐतिहासिक जीत में श्रीजेश की गोलकीपर की भूमिका बेहद अहम थी

41 साल के लंबे इंतजार के बाद टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर भारत को ओलंपिक मेडल दिलाया। टीम ने कांस्य पदक जीता और 1980 मॉस्को ओलंपिक में मिले गोल्ड मेडल के बाद भारतीय हॉकी को ये ओलंपिक मेडल दिलाया। इस पदक की जीत में टीम के चीफ कोच से लेकर सपोर्ट स्टाफ की भूमिका टीम के साथ अहम थी ही, लेकिन एक खिलाड़ी है जिसने सचमुच दीवार की तरह खड़े होकर और गोलपोस्ट पर डटकर टीम को पोडियम की तरफ ले जाने में साथ दिया - वो हैं गोलकीपर पी आर श्रीजेश।

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हर मैच में बचाए अहम गोल

पेनल्टी कॉर्नर के मामले में श्रीजेश ने महत्त्वपूर्ण मौकों पर गजब सेव किए
पेनल्टी कॉर्नर के मामले में श्रीजेश ने महत्त्वपूर्ण मौकों पर गजब सेव किए

भारतीय पुरुष हॉकी टीम का डिफेंस थोड़ा मुश्किल भरा पूरे ओलंपिक में रहा, ये बात किसी से छिपी नहीं है। अमित रोहिदास ने बेहतरीन डिफेंडिंग की लेकिन अन्य सभी खिलाड़ी उस हिसाब से नहीं खेल पाए। ऐसे में श्रीजेश ने जिस तरह गोलपोस्ट की रक्षा की वो काबिले तारीफ है। ग्रुप मुकाबलों में ऑस्ट्रेलिया के हाथों मिली 7-1 की हार को छोड़ दें तो बाकि सभी मैचों में श्रीजेश का डिफेंस लाजवाब रहा। न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले ग्रुप मैच में न्यूजीलैंड को कुल 10 पेनल्टी कॉर्नर मिले, लेकिन श्रीजेश की सूझबूझ से केवल 1 को ही किवी गोल में तब्दील कर पाए। स्पेन भारत के खिलाफ मैच में 7 में से एक भी पेनल्टी कॉर्नर को सफल नहीं कर पाया। यहां तक कि जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक के मैच में श्रीजेश ने पहले हाफ के 9वें मिनट में एक ऐसा फील्ड गोल रोका जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो। इसी मैच के अंतिम क्षणों में जर्मनी की टीम 5-4 से पिछड़ते हुए पेनल्टी कॉर्नर जीत चुकी थी। ऐसे में अंतिम 6 सेकेंड के खेल में श्रीजेश ने शानदार तरीके से पेनल्टी कॉर्नर रोका और पदक पक्का कर दिया।

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श्रीजेश की पर्फॉर्मेंस के बाद उन्हें The Wall के नाम से बुलाया जा रहा है
श्रीजेश की पर्फॉर्मेंस के बाद उन्हें The Wall के नाम से बुलाया जा रहा है

केरल के एरनाकुलम जिले में साल 1988 में जन्में श्रीजेश के परिवार का मुख्य व्यवसाय कृषि का ही है। बचपन में फर्राटा रेस का धावक बनने का सपना देखने वाले श्रीजेश ने लॉन्ग जम्प और वॉलीबॉल में भी हाथ आजमाया।

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श्रीजेश के नाम पर उनके गृह जनपद में एक रोड भी है
श्रीजेश के नाम पर उनके गृह जनपद में एक रोड भी है

स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर ने हॉकी का गोलकीपर बना दिया और बस यहीं से शुरुआत हो गई एक ऐतिहासिक करियर की। साल 2004 में जूनियर नेशनल टीम में श्रीजेश जगह पाई और 2 साल बाद ही सीनियर टीम का हिस्सा बन गए, हालांकि टीम की प्राथमिकता अनुभवी गोलकीपर भरत छेत्री और एड्रियन डिसूजा थे। श्रीजेश कुल 236 मैचों में भारतीय टीम के लिए गोलकीपिंग कर चुके हैं और टीम के सबसे वरिष्ठ खिलाड़ियों में हैं। 2011 एशियन चैंपियनशिप के फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ श्रीजेश ने पेनल्टी स्ट्रोक रोककर टीम को जीत दिलाई थी। 2014 में एशियाई खेलों का गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे।

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श्रीजेश को पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है
श्रीजेश को पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है

साल 2015 में श्रीजेश को खेलों में योगदान के लिए अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। श्रीजेश साल 2016 में टीम के कप्तान भी बने और टीम की अगुवाई रियो ओलंपिक में भी की। 2017 में श्रीजेश को पद्मश्री से नवाजा गया।टीम के बीच अन्ना के नाम से मशहूर श्रीजेश ने जीवन के 17 साल अंतराष्ट्रीय स्तर की हॉकी को दिए हैं और 21 साल से हॉकी खेलते आ रहे हैं। ऐसे में श्रीजेश के लिए ये ओलंपिक मेडल दो दशकों से भी ज्यादा समय की मेहनत का नतीजा है।

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Edited by निशांत द्रविड़
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