Tokyo Olympics - दिल्ली से 20 गुना छोटे देश सैन मरीनो ने जीता पहला ओलंपिक मेडल

सैन मरीनो की निशानेबाज पैरेली ने देश को उसका पहला ओलंपिक मेडल दिलाया
सैन मरीनो की निशानेबाज पैरेली ने देश को उसका पहला ओलंपिक मेडल दिलाया

दुनिया के सबसे छोटे देशों में शामिल सैन मरीनो की निशानेबाज ने टोक्यो ओलंपिक में बड़ा कारनामा कर दिखाया है। ऐलाहांद्रा पैरिली ने महिलाओं की ट्रैप शूटिंग स्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश को ओलंपिक इतिहास का उसका पहला मेडल दिलाया है। इसी के साथ सैन मरीनो ओलंपिक मेडल जीतने वाला दुनिया का सबसे कम आबादी वाला देश बन गया है।

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भारत के छोटे कस्बे जितना है आकार

सैन मरीनो की आबादी से ज्यादा क्षमता के स्टेडियम हमारे देश में हैं।
सैन मरीनो की आबादी से ज्यादा क्षमता के स्टेडियम हमारे देश में हैं।

दक्षिणी यूरोप में बसा सैन मरीनो मूल रूप से एक एंक्लेव के रूप में है और इटली से घिरा हुआ है। सिर्फ 61 वर्ग किलोमीटर मे फैला ये देश हमारे देश की राजधानी दिल्ली से 20 गुना छोटा है लेकिन ओलंपिक में ये मेडल जीतते ही सैन मरीनो एक बार फिर चर्चा में है। लगभग 34 हजार की आबादी वाले इस देश ने ओलंपिक पदक जीतकर सभी को हैरान कर दिया है। टोक्यो ओलंपिक में सैन मरीनो की ओर से कुल 5 खिलाड़ियों ने शिरकत की है।

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क्वालिफिकेशन में पैरिली रहीं दूसरे स्थान पर

पैरिली ने ट्रैप शूटिंग के क्वालिफिकेशन में 122 अंकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया था जबकि स्लोवाकिया की रेहेक जुजाना पहले नंबर पर थीं जिन्होंने फाइनल में भी 43 अंकों के ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ पहला स्थान हासिल किया। मुकाबले का सिल्वर मेडल अमेरिका की केल ने जीता। सैन मरीनो की पैरिली 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों में महिलाओं की ट्रैप शूटिंग स्पर्धा में पदक जीतने से चूक गईं थीं। उस साल पैरिली चौथे स्थान पर रहीं थीं और तब ये सेन मरीनो का ओलंपिक का सबसे बढ़िया प्रदर्शन था।

छोटे देश, बड़े कारनामे

टोक्यो में बरमूडा की फ्लोरा ने देश को उसका पहला गोल्ड मेडल दिलाया है।
टोक्यो में बरमूडा की फ्लोरा ने देश को उसका पहला गोल्ड मेडल दिलाया है।

टोक्यो ओलंपिक में छोटे देश लगातार बड़े कारनामे कर रहे हैं। सैन मरीनो के इतिहास रचने से 2 दिन पहले ही 63 हजार की आबादी वाला बरमूडा ओलंपिक गोल्ड जीतने वाला सबसे छोटा देश बन गया। बरमूडा की फ्लोरा डफी ने ट्रायथलॉन मे पहला स्थान हासिल कर अपने देश को गौरवान्वित किया जबकि साल 1976 ओलंपिक में ब्रॉन्ज के रूप में बरमूडा को पहला ओलंपिक मेडल मिल चुका है। इससे पहले भी कई मौकों पर दुनिया के कुछ सबसे छोटे देशों ने जीत हासिल कर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा है -

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1) लक्जमबर्ग - साल 1952 के हेल्सिंकी ओलंपिक में लग्जमबर्ग के जोसेफ बार्थेल ने पुरुष 1500 मीटर रेस जीतकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया था। बार्थेल जीत के बाद पोडियम पर खूब रोए थे। ये लग्जमबर्ग का इकलौता ग्रीष्मकालीन ओलंपिक गोल्ड है। वैसे लग्जमबर्ग को साल 1920 के ओलंपिक में सिल्वर के रूप में पहला ओलंपिक मेडल मिल चुका था।

2) सूरीनाम - इस दक्षिण अमेरिकी देश को 1988 सियोल ओलंपिक में इसका पहला गोल्ड दिलाया तैराक एंथनी नेस्टी ने जिन्होंने पुरुषों की 100 मीटर बटरफ्लाई स्विमिंग प्रतियोगिता में पहला स्थान पाया। नेस्टी ने प्रतियोगिता के विजेता माने जा रहे अमेरिकी मैट बेंडी को नजदीकी मुकाबले में पछाड़ा।

3) बहामास - 1964 के टोक्यो ओलंपिक खेलों में इस आइलैंड देश के सेसिल जॉर्ज और डरवार्ड नोवेल्स ने सेलिंग का स्वर्ण पदक जीता। ये बहामास का पहला गोल्ड जरूर था लेकिन इसके बाद ये देश 5 गोल्ड अलग-अलग ओलंपिक खेलों में जीत चुका है, विशेष तौर पर एथलेटिक्स में इस देश ने काफी नाम कमाया है।

4) ग्रेनाडा - 2012 के लंदन ओलंपिक में पुरुषों की 400 मीटर दौड़ के फाइनल में किरानी जेम्स ने 43.94 सेकेंड का नेशनल रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। इस समय तक दुनिया के कई लोगों ने ग्रेनाडा का नाम भी नहीं सुना था। खास बात ये है कि किरानी जेम्स ने 2016 रियो ओलंपिक में इसी स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता और ग्रेनाडा के ओलंपिक इतिहास के दोनों मेडल इसी खिलाड़ी ने दिए हैं।

किरानी जेम्स अपने देश ग्रेनाडा के इकलौते ओलंपिक मेडलिस्ट हैं।
किरानी जेम्स अपने देश ग्रेनाडा के इकलौते ओलंपिक मेडलिस्ट हैं।

सैन मरीनो की जीत इसलिए खास है क्योंकि इस जीत के बाद इस देश की ओर से इन खेलों में और प्रतिभाग बढ़ेगा। हालांकि सिर्फ 34 हजार की आबादी वाले इस देश से हम कितने एथलीट की उम्मीद रखें, पता नहीं, लेकिन फिर भी ऐसे छोटे देशों की बड़ी उपलब्धियां किसी भी अन्य देश के लिए प्रेरणा हैं।

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Edited by निशांत द्रविड़
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